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चीन का दुःख

चीन का दुःख भारत के भारत होने से है, जहाँ युद्ध की वेदी पर भी ईश्वर का नाम लेते हुए लोग कुर्बान हो जाते हैं।

भारत मतों का, पंथो का सम्मान करता है, यहाँ का प्रधान कर्मचारी भी ईश्वर के प्रतिबिम्ब के सामने सर झुकाता है, वह ईश्वर के प्रार्थना स्थलों को स्वायत्ता देता है, लेकिन चीन में आप को धार्मिक भी सरकारी आधारित नीतियों पर हो सकते है, जरा सोचें चीन भारत के खिलाफ क्यों न हो ? जहाँ  व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपने मतों के आधार पर आध्यात्मिक हो  सकता हो ? जहाँ संन्यास लेने के लिए किसी माओवादी अफसर को सुचना  नहीं देनी होती ?

चीन का दुःख  भारत के भारत होने से है, जहाँ युद्ध की वेदी पर भी ईश्वर का नाम लेते हुए लोग कुर्बान हो जाते हैं।

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से विवेक जी ने निमंत्रण पर मुलाक़ात की

राष्ट्रपति से विवेक जी की मुलाक़ात

यह चर्चा बंगलोर में वर्ष २००८ के मध्य में की गयी थी ।ये शब्द माननीय के द्वारा कार्यक्रम के दौरान बोले गए हैं, इन्हें जस का तस रखा गया है

राजनैतिक शून्‍यता

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जिनके जीवन में पवित्रता और शुद्धता है वहाँ से ही समर्पण,दान और सहभाजन शुरू होता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन लोग कहा करते थे की पवित्रता को जीवन में प्रवेश कराएँ।

अक्षय तृतीया

माननीय विवेक जी का सन्देश कर्नाटक में लिए गए राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

कर्नाटक के राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

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