चीन की "भारत दुर्भावना"

मैं ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि चीन की "भारत दुर्भावना" केवल इसलिए नहीं कि हम विकास की उचाईओं को छू रहे हैं बल्कि उसका दुःख है कि आज भी यहाँ रिश्ते हैं, प्रेम है, सम्मान है ग्रंथो का, मत का, पन्थ का। भारत का भारत जैसा होना, चीन का दुःख है।
चीन ने १९६६ -७१ तक सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर अध्यात्म, धर्म, पंथ, इतिहास पर हमला बोला था, यह हमला इंसानो पर भी था, इतिहासकारों के मुताबिक ५-२० लाख के आस पास लोगों ने अपनी जान गँवाई, शिक्षक -छात्र, गुरु -शिष्य, पिता- पुत्र, माँ -बेटी, भाई -बहन, अड़ोस-पड़ोस के लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए, कलाकारों और ज्ञानी, प्रतिभाशाली लोगों की हत्या हुई, हिंसा और हिंसा ने अपना नग्न खेल खेला। मैं ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि चीन की "भारत दुर्भावना" केवल इसलिए नहीं कि हम विकास की उचाईओं को छू रहे हैं बल्कि उसका दुःख है कि आज भी यहाँ रिश्ते हैं, प्रेम है, सम्मान है ग्रंथो का, मत का, पन्थ का।
भारत का भारत जैसा होना, चीन का दुःख है।

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से विवेक जी ने निमंत्रण पर मुलाक़ात की
राष्ट्रपति से विवेक जी की मुलाक़ात

यह चर्चा बंगलोर में वर्ष २००८ के मध्य में की गयी थी ।ये शब्द माननीय के द्वारा कार्यक्रम के दौरान बोले गए हैं, इन्हें जस का तस रखा गया है
राजनैतिक शून्यता

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जिनके जीवन में पवित्रता और शुद्धता है वहाँ से ही समर्पण,दान और सहभाजन शुरू होता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन लोग कहा करते थे की पवित्रता को जीवन में प्रवेश कराएँ।
अक्षय तृतीया

माननीय विवेक जी का सन्देश कर्नाटक में लिए गए राष्ट्र विरोधी निर्णय पर