धर्म की यात्रा

धर्म की यात्रा अकेले की यात्रा है, अकेले ही चलना है और जब अकेले चलना है तो 100 क्या कर रहे हैं वो नहीं, हम क्या कर सकते हैं, ये देखने की बात है, ये विवेकानंद होने का परिचय है। असल में भारत की आज महा दुर्दशा है, सड़क की गंदगी हो, घरों के आसपास की गंदगी हो, सड़कों पर हम किस तरीके से चलते हैं, हम कपड़े कैसे पहनते हैं, हमारे घर पर क्या-क्या होता है, हम क्या-क्या खरीदते हैं ? अगर हम सबको एक-एक करके देखने जायें तो हम पाएंगे कि हम वो चीजें केवल इसलिए ही करते हैं, क्योंकि कोई दूसरा कर रहा होता है। अगर दूसरे न करें तो हम भी न करें। चूंकि दूसरों के घरों में एयर कंडीशनर आता है तो हम सब बोलते है कि एक दिन मेरे घर पर भी होना चाहिए। वो आया क्यों इसकी वजह नहीं है, दूसरों के घर पर है इसलिए हमारे घर पर भी आ जाता है। दूसरे गलत तरीके से गाड़ी चलाते हैं तो हम कहते हैं वो तो चला रहा है, अपने को चलाने में क्या दिक्कत है, हम भी चला लेते हैं। हम आदतों में जीते हैं और आदतों में जीने के बाद फिर दूसरे हमारे जिंदगी को ढाल देते हैं। हम कभी, हम क्या हो सकते हैं स्वतंत्रता के क्षणों में, हम कभी इसका फैसला कर ही नहीं पाते, न हम अपने बच्चों में इन फैसलों को लाने देते हैं।
-विवेक जी "स्वामी विवेकानंद और भारत" व्याख्यान कार्यक्रम से

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से विवेक जी ने निमंत्रण पर मुलाक़ात की
राष्ट्रपति से विवेक जी की मुलाक़ात

यह चर्चा बंगलोर में वर्ष २००८ के मध्य में की गयी थी ।ये शब्द माननीय के द्वारा कार्यक्रम के दौरान बोले गए हैं, इन्हें जस का तस रखा गया है
राजनैतिक शून्यता

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जिनके जीवन में पवित्रता और शुद्धता है वहाँ से ही समर्पण,दान और सहभाजन शुरू होता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन लोग कहा करते थे की पवित्रता को जीवन में प्रवेश कराएँ।
अक्षय तृतीया

माननीय विवेक जी का सन्देश कर्नाटक में लिए गए राष्ट्र विरोधी निर्णय पर