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विवेकानंद जी - राष्‍ट्रवाद

विवेकानंद जी ने राष्‍ट्रवाद की जब बात की थी, कहा था कि ऐ धर्म में जीने वाले तुम लोग प्रतिक्षण धर्म के आधार से समाज के प्रति नए नियम बनाने वाले तुम लोग अगर समाज की इस उदासीनता में जीवन बिताकर गए तो धर्म भी शून्‍य है, तो जरा जागो, जागो देखो कि तुम जो धर्म से आधार से  हो क्‍या, समाज में उसके प्रति कोई काम कर पा रहे हो कि नहीं हुआ। उल्‍टा यह है कि बीते 10, 15, 20 सालों में धर्म की बात करने वाले लोग, गीता बाचने वाले लोग मुख्‍यमंत्री बन गए। गीता छूट गई, मुख्‍यमंत्रीत्‍व आ गया। धर्म की बात करने वाले लोग अक्‍सर राजनीति के चौराहों पर ऐसी अच्‍छी-अच्‍छी बात करते हैं कि लगता है कि राजनीति वाले धर्म में आ जायें  ज्‍यादा बेहतर होगा और धर्म वाले राजनीति में चले जाएं, ज्‍यादा बेहतर होगा। 
-विवेक जी "स्वामी विवेकानंद और भारत" व्याख्यान कार्यक्रम से

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से विवेक जी ने निमंत्रण पर मुलाक़ात की

राष्ट्रपति से विवेक जी की मुलाक़ात

यह चर्चा बंगलोर में वर्ष २००८ के मध्य में की गयी थी ।ये शब्द माननीय के द्वारा कार्यक्रम के दौरान बोले गए हैं, इन्हें जस का तस रखा गया है

राजनैतिक शून्‍यता

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जिनके जीवन में पवित्रता और शुद्धता है वहाँ से ही समर्पण,दान और सहभाजन शुरू होता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन लोग कहा करते थे की पवित्रता को जीवन में प्रवेश कराएँ।

अक्षय तृतीया

माननीय विवेक जी का सन्देश कर्नाटक में लिए गए राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

कर्नाटक के राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

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