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व्‍यवस्‍था के मंदिर

आपने देखा लोग मंदिर जाते हैं , हम ऐसे स्‍थल पर आ रहे हैं, जहां पर प्रभु विराजमान है, जिससे इस पूरी पृथ्‍वी का, इस पूरे संसार की नियम और मर्यादा चलती है, हम उसके मंदिर पर प्रवेश कर रहे हैं और जाकर अपने-अपने जूते और चप्‍पल देखकर आइए इतनी अव्‍यवस्‍था, इस व्‍यवस्‍था के मंदिर तक आने के लिए, समझ में नहीं आती। असल में हम आदतों में जीते हैं। हमारा मनुष्‍य होना तभी तक है, जब हम आदतों में हैं, जब हम आदतों के विरोध में खड़े हो जाते हैं, जब आदतें पीछे हो जाती है और जब हम कहीं आगे निकल जाते हैं, तब वो यात्रा शुरू होती है, जिसे मैं नरेन्‍द्रदत्‍त से विवेकानंद की कहता है, जिसे मैं नर से नारायण की यात्रा कहता हूं, क्‍योंकि हमारी बाकी सब कुछ आदतें ही है। हम आदतों से जाकर पैर भी छू लेते हैं, मालाएं भी पहना देते हैं, आरतियां भी कर देते हैं, श्रृंगार भी कर लेते हैं, सब कुछ हम कर लेते हैं, क्‍योंकि हमारे पूर्वज वैसा करते रहे, हमारे पिताजी वैसा करते रहे और चूंकि  हम आदतों में जीते हैं इसलिए आदतों से निकलकर कभी कोई सवाल भी नहीं कर पाते।
 
-विवेक जी "स्वामी विवेकानंद और भारत" व्याख्यान कार्यक्रम से

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से विवेक जी ने निमंत्रण पर मुलाक़ात की

राष्ट्रपति से विवेक जी की मुलाक़ात

यह चर्चा बंगलोर में वर्ष २००८ के मध्य में की गयी थी ।ये शब्द माननीय के द्वारा कार्यक्रम के दौरान बोले गए हैं, इन्हें जस का तस रखा गया है

राजनैतिक शून्‍यता

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जिनके जीवन में पवित्रता और शुद्धता है वहाँ से ही समर्पण,दान और सहभाजन शुरू होता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन लोग कहा करते थे की पवित्रता को जीवन में प्रवेश कराएँ।

अक्षय तृतीया

माननीय विवेक जी का सन्देश कर्नाटक में लिए गए राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

कर्नाटक के राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

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