top of page

श्रीराम कहे या पुरुषोत्तम

बड़े मजे की बात है, भारत में चरित्र कई और भी है कृष्ण हैं , शंकर हैं , विष्णु हैं , महावीर हैं , बुद्ध हैं , चरित्र कई हैं लेकिन मनुष्य की आत्मा को आज तक इस भारत की प्राचीन सभ्यता में, इस सनातन संस्कृति में अगर मनुष्य की आत्मा को सबसे ज्यादा किसी ने छूआ है तो वो श्री राम है।

   जीवन के इस विशाल मैदान में दो तरीके के लोगों ने आज तक जन्म लिया है, एक तो वो लोग है जिनके नामों से फिलास्फियां, दर्शन, विचार, विचारधारायें , बहुत सारी बातें निकली है। सामान्यत: हमारे सामान्य जीवन में उन लोगों को देखा जाता है, जिन्होंने जीवन और जीवन के अंदर बहुत सारी बातों को दिया है, बहुत सारे कामों को किया है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोगों का भी जमावड़ा है, एक कोना है, जिन्होंने न तो किसी फिलास्फी को जन्म दिया, जिन्होंने न तो किसी विचार को जन्म दिया, जिन्होंने न तो जीवन में शब्दों की श्रृंखलाओं का उद्घाटन किया, उन्होंने जीवन को, जो जैसा जीवन उन्हें मिला उन्होंने उस सामान्य जीवन को केवल जीवन के तरीकों से जी लिया और जैसा उन्होंने जीवन जिया, वो मनुष्य के पूरे समाज की विरासत का एक हिस्सा बन गया, क्योंकि जीवन ने उनको जो भी कुछ दिया, चाहे वो दर्द हो, चाहे वो आनंद, चाहे वो जीवन की टूट फूट हो या फिर जीवन से लगाव, उन्होंने जीवन को, जीवन की सरलता के माफिक जी लिया। जिन्हें हम भगवान राम कहते है ये उन्हीं कुछ एक लोगों में से है, जिन्होंने जीवन की सरलता को सरलता  से जी लिया।

 

बड़े मजे की बात है, भारत में चरित्र कई और भी है कृष्ण हैं , शंकर हैं , विष्णु हैं , महावीर हैं , बुद्ध हैं , चरित्र कई हैं  लेकिन मनुष्य की आत्मा को आज तक इस भारत की प्राचीन सभ्यता में, इस सनातन संस्कृति में अगर मनुष्य की आत्मा को सबसे ज्यादा किसी ने छूआ है तो वो श्री राम है। श्री कृष्ण भी मनुष्य की अंतरात्मा के स्तर को उतना नहीं छू सकें जितना श्री राम ने छुआ है। कारण सिर्फ इतना सा है कि श्री कृष्ण ने बहुत कुछ दिया, कोई विसंगतियों वाली बात नहीं है, श्री कृष्ण ने जीवन में बहुत कुछ दिया है। अगर हम श्री राम के साथ श्री कृष्ण की तुलना करने जाए तो दिखेगा तो वैसा कि श्री कृष्ण बहुत आगे निकल गए, लेकिन जब मैं श्री राम को देखता हूं तो मुझे सिर्फ इतना ही लगता है कि श्री कृष्ण हो सकता है बहुत आगे निकल जायें श्री राम के साथ तुलना में, लेकिन श्री राम ने जीवन में कुछ भी न करते हुए भी जो भी कुछ है वह अपने आपमें जीवन की चिरकालिक पद्धति का एक सबसे बड़ा उदाहरण है।

श्री कृष्ण का शास्त्र गीता हो सकता है, रहस्य का ज्ञान हो सकता है, श्री कृष्ण के जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जिसके ऊपर टिप्पणियां, विचार, वाद विवाद, दर्शन पैदा किए जा सकते हैं । पर अगर हम श्री राम के जीवन को देखे तो श्री राम के पूरे जीवन में  प्रतिदिन-प्रतिपल, आज से कल तक, सुबह से शाम तक, जीवन ने उनको जो भी कुछ दिया, श्री राम ने केवल उस बात को स्वीकारा और जीवन की पद्धति में केवल और केवल चलते गए। फिर भी मनुष्य की पूरी आत्मा को अगर अवशोषित करने की आज तक किसी की क्षमता, भारत की सनातन धर्म की संस्कृति में रही है तो वो राम की रही है।

 

अवतार तो कई हो सकते हैं श्री राम को भी पूर्ण अवतार नहीं कहा जाता, श्री राम को कई मायनों में पूर्ण अवतार नहीं कहा जाता, लेकिन मनुष्य की आत्मा पर अगर अधिकार की बात करें तो श्री राम एक ऐसा चरित्र है जिसने मनुष्य की आत्मा के ऊपर  एक अधिकार के साथ जीवन की श्रृंखला का उद्घाटन  किया। श्री कृष्ण अगर जीवन की पद्धति और विचार हैं  तो श्री राम जीवन का विकास और स्त्रोत है। श्री राम के ऊपर बात करने के लिए न तो किसी तर्क की आवश्यकता है, न तो किसी शास्त्र की आवश्यकता है, न तो पोथी की आवश्कयता है, न तो प्रकाण्डता की आवश्यता है बल्कि बात तो यह है कि अगर श्री राम के ऊपर बात की जाए, अगर तर्कों को साथ लेकर, पोथियों को साथ लेकर, प्रकाण्डों को साथ लेकर अगर श्री राम के ऊपर बात की जाए तो श्री राम कहीं बहुत पीछे छूट जाते हैं।

 

 मेरा अपना एक व्यक्तिगत अनुभव  है कि श्री राम के ऊपर अगर बात करनी हो, तो न तो वो प्रकाण्डता के साथ हो सकती है, न तो वह पोथियों के साथ हो सकती है, न तो वह तर्क के साथ होती है, न तो वह वाद-विवाद के साथ हो सकती है। श्री राम के ऊपर अगर बात हो सकती है तो केवल तब जब मनुष्य जीवन के मालुमात में, जीवन के क्षेत्रों में, इतना सरल हो जाए कि जीवन के अंदर स्वीकार्यता और जीवन हमें जो कुछ दे रहा है  उसको स्वीकारना की क्षमता जब सरलता का साधन बन जाए तब राम के ऊपर बात की जा सकती है।

 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि श्री राम, चरित्र के मार्फत एक ऐसा चरित्र हैं  जिसकी पूरी दुनिया  की सभ्यता , दुनिया में आज तक जितनी भी सभ्यतायें  हुई है लगभग-लगभग सारी सभ्यताओं   में श्री राम जैसा कोई न कोई एक चरित्र मौजूद है। यहां तक बात तो इतनी है कि श्री राम का पूरा जो जीवन हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है,मैं कहता हूं कि एक इंटरनेशनल, एक अंतर्राष्ट्रीय चरित्र हैं । कृष्ण एक हो सकते है, बुद्ध एक हो सकते है, महावीर एक हो सकते है, जीसस एक हो सकते है,  लेकिन मनुष्य की सभ्यता श्री  के अंदर राम एक ऐसा चरित्र है जो अंर्तराष्ट्रीय है। पूरी दुनियां की सभ्यताओं  में श्री राम जैसा कोई न कोई एक चरित्र दिखाई देता है। थोड़ी बहुत कुछ विषमताएं मिलेंगी , अगर इतिहासज्ञ, अगर एंथ्रोपॉलाजिस्ट अगर वो अध्ययन करने जाएंगे तो उन्हें थोड़ी बहुत विषमताएं दिखाई देगी। मेरी अपनी दृष्टि ये है कि मनुष्य की इस सभ्यता  से, मनुष्य  का जो इतिहास है उस इतिहास की आत्मा कहीं न कहीं श्री राम के चरित्र के साथ गुथी, बसी और रची हुई है, क्योंकि सभ्यता जैसे पैदा होती है, सभ्यता जैसे विकास की परछाईयों को छूती है उस सभ्यता के अंदर जीवन की जो विलक्षणता है, वो विलक्षणता भी कहीं न कहीं से स्पष्ट होना शुरु होती है। कभी वह साधन व्यक्ति बनता है, कभी वो साधन किताबें, विवाद और तर्क बन जाते है, लेकिन इतिहास की जितनी भी सभ्यतायें  थी, चूंकि विकास एक समतुल्य मायनों में हुआ था, एक प्रतिभा का विकास था। इसलिए तर्क, वाद-विवाद और किताबें मनुष्य की सभ्यता का स्त्रोत नहीं था, तब चरित्र जीवन के मायने, सभ्यताओं  के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हुआ करते थे इसलिए तो श्री राम पूरी दुनिया का जो हमारा सभ्यतर  इतिहास है उसका एक महत्वपूर्ण, एक अभिन्न भाग हैं ।

 

बात तो यहां तक है कि आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं कि ये जो हमारा थाईलैंड  है अगर हम उसके इतिहास में जाए तो वहां पर भी एक राम है, वहां  पर भी एक अयोध्या है जिसे हम आज बैंकाक के नाम से जानते है उसका पुराना नाम अयुत्था हुआ करता था। जो केवल भाषाओं की विषमता के कारण उनका अयुत्था और सनातन संस्कृति का अयोध्या था। बहुत सारी बातें बहुत ही सिमिलर है, समान है, क्योंकि सभ्यता और सभ्यता की आत्मा का जोड़ तो एक ही है। राम.... हे राम!

 

श्री राम मनुष्य की आत्मा की परिभाषा हैं  बहुत अजीब लगेगा जब मैं कहूंगा मनुष्य की आत्मा की परिभाषा राम हैं। मैं इसलिए कहता हूं कि श्री राम मनुष्य की आत्मा की परिभाषा है, क्योंकि श्री राम के साथ जो भौतिक देह  है और जो आत्मिक देह  है उन दोनों के बीच कोई भिन्नता, कोई अंतर, नहीं बच जाता। श्री राम जीवन को पूरी सरलता के साथ जीते हैं, जहां आत्मा, जहां इंटरनल बॉडी और फिजीकल बॉडी में कोई भिन्नता नहीं रह जाती। जब सरलता, जब सफाई इतनी वृहद हो जाती है कि जब आत्मा और आत्मधारी के बीच कोई भेद नहीं रह जाता इसलिए मैं कहता हूं कि मनुष्य की आत्मा की जो परिभाषा है वो श्री राम है, क्योंकि श्री राम ने जिस सरलता के साथ जीवन को जिया है शायद दूसरा कोई इंसान उतनी सरलता के साथ जीवन को नहीं जीता। जहां जीवन को जीने के लिए न तो विचार है, न तो तर्क है, न तो विवाद है, न तो प्रकाण्डता है, न तो परिभाषा है, न तो डिस्कोर्सेस है। जीवन जैसा है उन्हीं हालातों में श्री राम ने जीवन को स्वीकार कर लिया। हो सकता है श्री बुद्ध और श्री महावीर को रोने में बहुत तकलीफ हो जाए, श्री राम को मैनें कहा मनुष्य की आत्मा की परिभाषा है, क्योंकि वो सरलता है।  राम के जीवन में एक नहीं ऐसे अनेक लम्हे  आते हैं  जब श्री राम बिलख कर रोते है, न तो सवाल करते, न तो प्रकाण्डता को ढूंढते, न तो वाद-विवाद और तर्क और फिलास्फी करते। जीवन ने श्री राम को आंसू दिए, श्रीराम ने उन आंसुओं को स्वीकार कर लिया। जीवन में एक नहीं ऐसे अनेक क्षण आते है जब श्री राम बिलख कर रोते है ये जीवन की सरलता का सबसे बड़ा उदाहरण है।

 श्रीबुद्ध को बहुत तकलीफ हुई रोने में, बुद्ध एक नहीं हजार तर्क देंगे कि रोना क्यों नहीं चाहिए, दुखी क्यों नहीं होना चाहिए, श्री राम ऐसा कुछ भी नहीं करते। जीवन उन्हें दुख देता है, दुख से पीड़ा आती है, पीड़ा से अश्रु आते हैं, आंसु निकलते हैं  श्री राम उन आंसुओं को न तो पीते है, न तो रोकते है, आंख से आंसु झरझर बह जाते हैं। श्री महावीर को बहुत तकलीफ होगी रोने में, जीसस को तकलीफ होगी रोने में, दुनियां के सारे जिन्हें हम परमात्मा मानते हैं, हो सकता है उन्हें रोने में तकलीफ हो जाए, लेकिन श्री राम को रोने में कोई तकलीफ नहीं हुई। ये जीवन की सरलता का, मैं कहता हूं दुनियां की सारे दर्शन शास्त्र, दर्शन वाद, दुनियां की सारी धर्म की विचार पद्धतियां श्रीराम के उन आंसुओं के सामने अधूरी हैं , क्योंकि श्रीराम ने जीवन में जो भी जैसा कुछ भी मिला उसको वैसा ही स्वीकार करके मनुष्य निष्पत्ति की अवधारणा बना दिया।

 

एक कहानी याद आती है मुझे, मृगनाथ  एक संत हुए थे उत्तरप्रदेश में। काफी जमघट और जमावड़ा रहता था, बहुत सारे लोग आते थे उनके पास तर्क करने, विचार करने, दर्शन की बात करने। उनका भरा पूरा परिवार था, क्योंकि जब लोग ऐसी बातें करने लगते है तो फिर कई लोग उनके पीछे हो जाते है, वो गुरु बने न बने लेकिन उनके शिष्य मौजूद हो जाते हैं  और इन गुरुओं और शिष्यों की कुछ अजीब ही बात है। कभी-कभी तो ऐसा होता है,सामान्य बात है कि अगर आप अपने आपको गुरु समझने लगे तो शिष्य बनने जायज हैं , चेले बनने जायज हैं , लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि आप गुरु न भी बने, गुरु न भी माने फिर भी चेले तैयार हो जाते हैं तब बड़ी दुविधा हो जाती है, क्योंकि तब विरोधाभास हो जाता है। वो तो मजे की बात है कि आप गुरु बने तो फिर चेले बने, जैसा आज का पूरा कार्यक्रम है कि लोग गुरु बनते हैं  तो फिर चेले बन जाते हैं  इसलिए गुरुओं और चेलों  के बीच सामान्यत: कभी कोई विरोधाभास नहीं होता, कोई विरोधाभास नहीं होता एक अजीब सी  अंडरस्टेंडिग है। लेकिन जब आप गुरु न हों, अपने आपको गुरु न मानें  और चेले बन जायें तो बड़ा विरोधाभास होता है, और वहीं आदमी सबसे बड़ा गुरु होता है, क्योंकि गुरु और चेले के बीच जब तक विरोधाभास नहीं है तब तक गुरु किन्हीं मायनों का गुरु नहीं है। अगर गुरु और चेले के बीच विवाद हो जाए, दर्शन की मतभिन्नता हो जाए तब ही मैं समझता हूं कि गुरु सही गुरु हो सकता है। तो मृगनाथ  जी मेरे लिए सबसे बड़े और पक्के गुरु थे। उनके घर पर उनकी माता की मौत हो जाती है वो बिलख बिलख कर रोना शुरु कर देते हैं, सुबह से शाम तक वो बिलख बिलख कर रोते हैं  इतने में उनके सारे चेले आते हैं, चेले काफी समझाते हैं कि गुरुजी क्या कर रहे हैं आप? अगर आप ऐसे बिलख बिलख कर रोएंगे तो लोग क्या कहेंगे? कि मृगनाथ  जैसा संत और महात्मा भी रोता है, शरीर के साथ इतना लगाव है जबकि वो सब कुछ जानता है कि आत्मा का सत्य क्या है, परमात्मा का सत्य क्या है लेकिन फिर भी शरीर के लिए इतना रोता है। चेले बहुत समझाने लगे, खींच-खींच कर घर के अंदर ले जाने लगे पर मृगनाथ  चीख कर चिल्लाए और बोले कि लात मारता हूं ऐसे तर्क को, अस्वीकार करता हूं ऐसे विचार को, ऐसी पद्धति और विश्वास को जो मनुष्य की सरलता, रोना हमारी एक सरलता है, दर्द होगा तो आंसू जरुर निकलेंगे। मृगनाथ ने कहा कि यह अस्वीकार करता हूं, लात मारता हूँ और अलग करता हूँ  उन सारे तर्क विचार, विश्वास, विचार पद्धतियों को जो मनुष्य को रोने के लिए भी मनाही दें। जो मनुष्य के रोने के लिए भी अड़चन और विरोध पैदा कर दें ऐसे तर्क, ऐसे विचार, ऐसी दर्शन पद्धतियों को मैं नकारता हूं। मैं समझता हूं कि मृगनाथ  ने जीवन की पूरी विशालता को वैसा ही समझा था, जैसा श्री राम ने समझा था।

 

मैनें कहा कि जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब श्री राम चीख चीख कर राते हैं, चिल्लाते हैं, रावण पत्नी को उठाकर लेकर जाता है, राम जंगल भर में खोजते हैं, श्री राम सवाल नहीं करते। अगर बुद्ध होते, महावीर होते, जीसस होते और अगर कोई और होता तो कई सवाल करता कि पत्नी कौन, पति कौन? हम सब तो चरित्र हैं, अभिनेता हैं, सब नाटक है। न तो कोई पत्नी है, न तो कोई पति है? कौन सीता, कौन मेरी पत्नी? श्री राम ऐसा कुछ भी नहीं करते,जीवन में उन्होंने जिससे प्रेम किया वो उन्हें दिखाई नहीं देती, दुख और पीड़ा होती है, कई सवाल आते हैं, मन असंतोष से भर जाता है और यह असंतोष, यह पीड़ा, ये दर्द आंसुओं को उनकी आंखों से तरोबार कर देता है, श्री राम नहीं रोकते। श्री राम दर्शन और  वाद विवाद नहीं करते, श्री राम सवाल नहीं करते। जीवन ने आंसु दिया वो आंसु को जैसा का तैसा जीवन को समर्पित कर देते हैं। रोते हैं, चीखते हैं, चिल्लाते हैं, ढूंढते हैं- कहां है मेरी सीता? मैं कहता हूँ  कि वो दिल तो पत्थर दिल होगा, वो ह्रदय तो पत्थर से बना होगा, कि जिस पत्नी, जिनके  प्रेम के अंदर वो सामंजस्य से हैं, संवेदनाओं से हैं और वो प्रेम न दिखे और वो ह्रदय रो न सकें? मैं समझता हूँ  उस ह्रदय  में न तो दर्शन समझा, न तो परमात्मा समझा। शब्दों से जीवन नहीं बनता,जीवन बनता है जब शब्द खत्म हो जाते है और जीवन की सरलता से हमारा परिचय होता है, तो जीवन का निर्माण होता है। श्री राम जीवन के सबसे बड़े निर्माता हैं, जिन्होंने जीवन जो जैसा है उसको वैसा ही जी लिया। पिता दशरथ उन्हें 14 वर्ष के वनवास के लिए भेज देते हैं वो तर्क नहीं करते, वो सवाल नहीं करते कि क्या है? अधिकार और कर्त्तव्य क्या है ? मैं क्यों आपकी बातें मानू, मैं क्यों जंगल में जाऊँ , कौन मेरा बाप, कौन मेरी मां, वो कुछ भी सवाल नहीं करते। बाप उन्हें कहता है 14 वर्ष के लिए जंगल चले जाओं, श्री राम उसी क्षण जंगल के लिये रवाना हो जाते हैं, श्री राम सवाल नहीं करते।

 

 मेरे लिए दुनियां के सारे दर्शन यहां पर अपरिपक्व  हो जाते हैं, क्योंकि मैं समझता हूं कि जीवन हमें जो भी कुछ देता है जब हम अपने सवाल करने बंद कर दें, जब जीवन के प्रति हमारे सारे सवाल खत्म हो जाते हैं तभी जीवन के अंदर निर्माण की सही शिला का उद्घाटन  होता है। श्री राम मेरे लिए एक ऐसे व्यक्ति हैं जो जीवन की प्राथमिक शिला हैं उसके उद्घाटनकर्ता हैं। मुझसे कभी किसी ने सवाल किया था कि आखिर कबीर को राम के प्रति इतनी समीपता क्यों लगी होगी? कबीर को कहा जाता है कि वो निर्गुण के स्वामी थे, मैं उस विवाद में नहीं पडऩा चाहता कि वो निर्गुण के स्वामी थे या सगुण के स्वामी थे, वो निर्गुण वादी थे या सगुण वादी थे? वो सब बेकार की बात हैं, मैं कहता हूँ कबीर जैसे इंसान के लिए श्री राम जैसा इंसान ही सहारा बन सकता है, क्योंकि कबीर जीवन की सरलता का उदाहरण हैं और श्री राम जीवन के सरलता के स्रोत हैं। कबीर को जीवन के प्रति कोई बुराई नहीं है, कोई शिकायत नहीं है, श्री राम को भी कोई शिकायत नहीं है, जीवन उनको जो देता है उसको वो स्वीकार कर लेते हैं।

 

श्री राम के संबंध में एक दिन में जो दो चरणों की बात हम कर रहे हैं इनमें श्री राम को तो आपके सामने रख पाना मुश्किल है, क्योंकि जिस तरीके से जिस रामचरित मानस के हमने राम को जाना है वो श्री राम तो कहीं कहानियों में गुम हो गया है। जिस श्री  राम को मैनें जाना है वो मेरे लिए जीवन के सारे दर्शनों, सारे विचारों, सारे विवादों सारे तर्कों के भी ऊपर  बैठा हुआ इंसान है। अगर कृष्ण की गीता पर मैं साल भर तक चर्चा कर सकता हूँ  तो श्री राम के पूरे चरित्र पर मैं पूरा जीवन चर्चा कर सकता हूँ , क्योंकि कृष्ण की गीता में तो तर्क है, विचार है, पद्धतियां हैं, जिनको समझने के लिए मन बुद्धि की आवश्यकता होती है। श्री राम का पूरा जीवन बचपन से बुढ़ापे तक और पूरी घटनाएं अपने आपमें एक शास्त्र हैं। कृष्ण के जीवन में एक शास्त्र होगा जिसे हम गीता कहते हैं, कहीं कोई धम्मपद होगा कहीं कोई बाइबिल होगी।  श्री राम का तो पूरा जीवन ही, जीवन के एक एक क्षण अपने आपमें एक एक शास्त्र हैं, विशाल शास्त्र हैं।  अगर श्री राम को समझ लिया गया तो जीवन में शास्त्रों की आवश्यकता खत्म हो जाती है, क्योंकि जब राम जैसा चरित्र हमारे जीवन की अवधारणा का स्रोत  बनता है, तो जीवन में जीवन में शास्त्रों की, तर्कों की, विचारों की, विवादों की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। राम..... हे राम.......। अगर गांधी जैसे लोगों को राम ने सहारा दिया था तो कारण सिर्फ इतना ही है कि जीवन की सरलता का मोह बढ़ जाता है।

 आज बस इतना ही आगे कल चर्चा करेंगे।

 

( श्री राम कहें या पुरुषोत्तम प्रवचन से )

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से विवेक जी ने निमंत्रण पर मुलाक़ात की

राष्ट्रपति से विवेक जी की मुलाक़ात

यह चर्चा बंगलोर में वर्ष २००८ के मध्य में की गयी थी ।ये शब्द माननीय के द्वारा कार्यक्रम के दौरान बोले गए हैं, इन्हें जस का तस रखा गया है

राजनैतिक शून्‍यता

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जिनके जीवन में पवित्रता और शुद्धता है वहाँ से ही समर्पण,दान और सहभाजन शुरू होता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन लोग कहा करते थे की पवित्रता को जीवन में प्रवेश कराएँ।

अक्षय तृतीया

माननीय विवेक जी का सन्देश कर्नाटक में लिए गए राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

कर्नाटक के राष्ट्र विरोधी निर्णय पर

bottom of page