सूरदास जी कहते हैं - उधौ के बयाँ से
सब नदियाँ जल जल भरि भरि रहियाँ सागर केहि विधि खारी
उधौ क़र्मन की गति न्यारी
जब सारी नदियाँ भरभर के जल को सागर में भर रहीं हैं फिर भी सागर क्यों खारा है ? यह सब कर्मों की गति है।
जीवन में कर्मों की संगति उस वृक्ष की डालियों के समान हो जहां तनिक प्रवेश कर जाने पर आकाश पर समा जाने का भ्रम ना हो, और यही कर्मों की संगति आकाश और वृक्ष के संयोग को समर्पण बना देती है। यही समर्पण है जो सुंदर है।