आज से लगभग ९ वर्ष पहले आज ही के दिन एक विचार प्रक्रिया के लिए कार्यक्रम शुरू किया गया था, नाम था "ओशो पर पुनर्विचार" लोगों ने मुझसे कहा क्या आप ओशो के विरोधी है? तब मैंने कहा था विरोध मेरा आशय नहीं मैं तो जो करता हूँ प्रेम में करता हूँ और प्रेम ही है जो भगवान रजनीश को प्रकट करके ओशो की निरर्थकता और भटकाव पर पुनर्विचार करना चाहता है।
प्रेम ही है जो सार्थक चिंतन कर सकता है, जो बिना किसी भेद भाव के सत्य को प्रकट करने का साहस कर सकता है, नहीं तो लोग या तो विरोधी होते हैं या अंधे प्रशंसक, ये किसी को समग्रता से देख नहीं पाते। समग्र देखने के लिए प्रेम होना चाहिए। इस प्रेम से चला पुनर्विचार अंधे प्रशंसकों की बलि चढ़ गया, कई कार्यक्रम रुकवा दिया गया, तब मैंने कहा था - आचार्य रजनीश कहीं पर रो रहे होंगे, कि जीवन भर सत्य बोलने की शिक्षा का परिणाम बड़ा घातक रहा कि उनके अधिकतर भक्त डरपोक निकले।
आचार्य आपसे प्रेम है, पर भगवान रजनीश आप बड़े निरर्थक रहे, और ओशो - उसने आचार्य रजनीश की बलि ले ली। आज के दिन आचार्य रजनीश ने जन्म लिया था, वो कहीं रास्ते में खो गए, आचार्य रजनीश को समस्त धरा हमेशा प्रणाम करते रहेगी, और ओशो ...को उनके सन्यासी ही अपराध भाव में ग्लानि की परिभाषा देते रहेंगे।
जय हो !