
इस देश से अंग्रेज़ चले गए लेकिन अंग्रेज़ी शासकों की नीतियां आज भी जीवन है और इन्हीं नीतियों के कारण हमारा देश स्वतंत्रता के समय से ही प्रताड़ित होता आ रहा है। राजनीति ने समय समय पर अंग्रेजों की इन्ही नीतियों का इस्तेमाल करके इस देश को बाँटा है और जब उस देश को बाँटा है, कहीं भाषा के नाम पर कहीं पंथ के नाम पर।
कल एक बड़ी दुर्घटना से देश में होती है की भगवान शिव को मानने वाले लोगों को राजनीति के नाम पर फिर से बाँट दिया गया, उन्हें minority का दर्जा दिया जाता है और उस आधार पर शैव समाज को बाँट दिया गया। श्री शिव हैं जिन्होंने इस वैदिक आधार से चलने वाले समस्त संस्कारों के शिखर हैं, जिन्हें आज हम तथाकथित रूप से हिन्दू कहते हैं ये वे वो लोग हैं जिनके पूजा पद्धति के शिखर पर श्री शिव हैं। अगर राजनीती शैव समाज को गैर हिन्दू के तौर पर विभाजित करती है तो इससे बड़ी दुर्घटना और कुछ नहीं हो सकती, यह शायद समस्त हिन्दू समाज पर सबसे बड़ा प्रहार है।
मैं व्यक्तिगत रूप से इस प्रहार की कड़ी निंदा करता हूँ और वैदिक संस्कारों के आधार पर संयोजित इस हिन्दू जीवन संस्कार पर किये गए इस घोषित अपराध की कड़ी निंदा करता हूँ।
आखिर कब ऐसा होगा कि यह समाज विघटन की नीतियों से आगे निकलकर कुछ सोच पायेगा ? ऐसे ही अगर यह समाज बँटता रहा तो यह राष्ट्र और इस राष्ट्र के संस्कार बचेंगे कहाँ ? कहाँ बचेगा इस राष्ट्र का अप्रतिम गौरव् ? इस राष्ट्र की राजनीति, इस राष्ट्रीय गौरव को मिट्टी में मिलकर समाप्त करना चाहती है, ताकि वे 'फुट डालो और राज करो' की नीति के आधार पर अपना राज निश्चित कर सकें।
भारत में ऐसी दुर्घटनाएं इस राष्ट्र की अस्मिता प्रहार हैं, भारत को कहीं कसी बाहरी दुश्मन से ख़त्म नहीं किया जा सकता, इस भारत के 'जयचंद" काफी हैं इस देश की मिट्टी को अपवित्र करने के लिए, ऐसे ही नीतियां इस राष्ट्र को विभाजन की तरफ लेकर जा रही हैं।
मैं भारत के समस्त अखाड़ों, पंथ के गुरुओं, कथावाचकों और समस्त राष्ट्र के प्रेमी मित्रों से आग्रह करता हूँ की आप इस निति का विरोध करें, जो घटना कर्नाटक में हुई है यह घटना ऐसी ही है जैसे इस राष्ट्र के टुकड़े कर दिए गए हैं, भाई भाई को बाँट दिया गया हो।
मैं इस राष्ट्र के वकीलों से आग्रह करता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के विरोध में पेटेशन लगायी जाए।
मैं इस देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से आग्रह करता हूँ कि इस जघन्य घटनाक्रम के भविष्य और देश की आतंरिक शांति और वैदिक संस्कारों पर किये गए प्रहार से अनभिज्ञ न रहते हुए, अपने अंतर्मन से निश्चय करें कि क्या शैव समाज हिन्दू संस्कारों से अलग है ? क्या देश को बांटने की नीतियां वो ऐसे ही स्वीकार करते रहेंगे ? क्या ईश्वर के नाम पर जितना देश बांटा जा सके वो मौन रहकर इसकी स्वीकृति देते रहेंगे ?
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था - जागो, मैं कहता हूँ न सिर्फ जागो अब कुछ करो भी, नहीं तो राष्ट्र की राजनीति इस देश को पतन ही नहीं अपवित्र करते हुए, इसको खंड खंड में बांटती समाप्त ही कर देगी।
आपका