
मैं ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि चीन की "भारत दुर्भावना" केवल इसलिए नहीं कि हम विकास की उचाईओं को छू रहे हैं बल्कि उसका दुःख है कि आज भी यहाँ रिश्ते हैं, प्रेम है, सम्मान है ग्रंथो का, मत का, पन्थ का। भारत का भारत जैसा होना, चीन का दुःख है।
मैं ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि चीन की "भारत दुर्भावना" केवल इसलिए नहीं कि हम विकास की उचाईओं को छू रहे हैं बल्कि उसका दुःख है कि आज भी यहाँ रिश्ते हैं, प्रेम है, सम्मान है ग्रंथो का, मत का, पन्थ का। भारत का भारत जैसा होना, चीन का दुःख है।
चीन ने १९६६ -७१ तक सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर अध्यात्म, धर्म, पंथ, इतिहास पर हमला बोला था, यह हमला इंसानो पर भी था, इतिहासकारों के मुताबिक ५-२० लाख के आस पास लोगों ने अपनी जान गँवाई, शिक्षक -छात्र, गुरु -शिष्य, पिता- पुत्र, माँ -बेटी, भाई -बहन, अड़ोस-पड़ोस के लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए, कलाकारों और ज्ञानी, प्रतिभाशाली लोगों की हत्या हुई, हिंसा और हिंसा ने अपना नग्न खेल खेला। मैं ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि चीन की "भारत दुर्भावना" केवल इसलिए नहीं कि हम विकास की उचाईओं को छू रहे हैं बल्कि उसका दुःख है कि आज भी यहाँ रिश्ते हैं, प्रेम है, सम्मान है ग्रंथो का, मत का, पन्थ का।