आज एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि विवेकानंदजी, आज मैंने बताया कि टीवी देख रहा था, बहुत दिनों बाद देखी। विवेकानंदजी एक बात कहते थे - 'मानव सेवा परम सेवा' । विवेकानंदजी पहले व्यक्ति थे बीते 100 साल में, उसके बाद तो उसका चलन आ गया। अब तो कोई भी धर्म का आदमी है, वो जब तक सर्विस की बात न करें, तब तक उसकी धार्मिकता जायज नहीं ठहराई जाती। उसको सर्विस देना बहुत जरूरी है और मजेदार बात यह है कि आज सारे धर्म के मंचों से धार्मिक संस्थाओं से सर्विस की बात निकलकर आ रही है, अच्छी बात है- यह विवेकानंदजी की देन है।
मैं समझता हूं कि उन्होंने मानव सेवा परम सेवा की बात नहीं की होती तो भारत का धार्मिक जगत् जिस तरीके से समाज की बातों को लेकर मौन और निष्ठुर था, वैसा ही वो बचा रह जाता। एक बड़ी अच्छी बात विवेकानंदजी के कारण हुई, पता नहीं आप लोगों से किसी ने कहा होगा या नहीं कि आज एक-एक धार्मिक प्रतिष्ठान, मैं उनको प्रतिष्ठान कहता हूँ, एक-एक धार्मिक प्रतिष्ठान और कोई भी महाराज और कोई भी बाबा वो जब तक तथाकथित मानव सेवा के बारे में बात न करे या आपसे इसको लेकर डोनेशन न ले, तब तक वो काम होता नहीं, तब उसको धार्मिक नहीं माना जाता। ये बड़ा महत्वपूर्ण कार्य विवेकानंदजी के कारण हुआ, क्योंकि अगर उन्होंने मानव सेवा परम सेवा की अगर टिप्पणी नहीं की होती तो भारत का धार्मिक जगत, जितना निष्ठुर समाज के औचित्य के बाबत् था, उतना ही निष्ठुर हमेशा बचा रह गया होता।
-विवेक जी "स्वामी विवेकानंद और भारत" व्याख्यान कार्यक्रम से