अगर थोड़ा सा भी कोई प्रेम उस आदमी के बारे में है, जिसके प्रति हमने दीपक जलाई है, अगर थोड़ा सा भी प्रेम है तो बाकी सारी किताबें पब्लिश करने के अलावा उनके नाम पर 10 लाख पेड़ लगाने के अलावा, एक मिशन की स्थापना करने के अलावा हम शायद एक कोशिश कर सकेंगे कि वो जो 100 युवा जिनको वो खोज रहे थे, हम एक ही युवा इस अपने नगर, अपने शहर से या हो सके अपने घर से बनाने की कोशिश तो शुरू करें, क्योंकि विवेकानंदजी के बारे में एक नहीं 10 करोड़ किताबें लिख दी जाए, कोई अर्थ नहीं निकलता जब तक विवेकानंद जी जैसा व्यक्तित्व इस धरा पर चले नहीं। हम कितनी भी किताबें लिख दें, कितने भी प्लांटेशन करा दें, कितने भी मिशन की स्थापनाएं करा दें, कितने भी स्कूल खोल दें, जो स्कूल चल रहे हैं, अर्थ कुछ नहीं निकलता, जब तक उस जैसे व्यक्ति को हम दोबारा अपने, कहीं समाज के बीच से चलने पर मजबूर न कर दें।
-विवेक जी "स्वामी विवेकानंद और भारत" व्याख्यान कार्यक्रम से