
जब भी व्यापार और राजनीति, धर्म और विज्ञान का उपयोग करती है तो मनुष्य की भावी परिस्थितियों पर अपराध का प्रश्नावाचक चिन्ह लग जाता है।
( ये शब्द माननीय विवेक जी द्वारा एक कार्यक्रम में दिए दिए वचनो से है इसलिए इन्हें जस का तस रखा गया है, इसकी रिकॉर्डिंग मौजूद है जो की ऑडियो के रूप में सुनी जा सकती है)
सादर प्रणाम।
मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिन घटनाओं में कुछ असत्य, कुछ झूठ ऐसे लोगों के हाथों में आ पड़ते है जिनकी शक्ति, लेखन और धन बल के माध्यम से उस असत्य को भी मनुष्य के मन में सत्य की तरह बैठा दिया जाता है। दूसरी ओर मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, कुछ ऐसे सत्य होते हैं जो निकम्मे और व्यापारिक लोगों के हाथ में पड़ जाने के कारण जीवन की मूलभूत सच्चाई और सत्य होने के कारण भी संशय का कारण बन जाते है। अगर मुझसे पूछा जाए कि क्या वास्तु एक आध्यात्मिक, क्या यह एक आध्यात्मिक विज्ञान की बात है? अगर मुझसे पूछा जाए कि वास्तव में वास्तु का अपना कोई विज्ञान है? मैं कहूँगा अवश्य ही है, बल्कि मजे की बात तो यह है कि विज्ञान और आध्यात्म ये जो दो कोण है मनुष्य के जीवन के, कम से कम पिछले 300-400 सालों में अगर इन दोनों क्षेत्रो में कोई सबसे बड़ी समानता और संदर्भ में अगर एक सामंजस्य की बात हो तो वास्तु से, वास्तु के अलावा कोई दूसरा विषय नहीं है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे नहीं दिखता जिनमें इतनी गहराई के साथ वैज्ञानिकता भी हो और धर्म और आध्यात्म के विचार सूत्र भी हो। लेकिन होता यह है, विवेकानंद जी ने कही पर एक बार कहा था कि धर्म जब जाकर रसोई में बैठ जाता है, जब धर्म रसोई में निवास करने लगता है तो धर्म की आत्मा की हत्या हो जाती है। और मैं कहूँगा कि धर्म जब व्यापारिक लोगों के हाथ में पड़ जाता है तो धर्म के साथ बलात्कार होना शुरु हो जाता है।
पिछले कुछ 10-20 साल, जिन 10-20 सालों में वास्तु के बारे में काफ़ी बातचीत हुई है। लोग विरोध में आकर भी खड़े हुए है लोग अंधी सत्ता की तरह सपोर्ट में आकर भी खड़े है। लेकिन इन 10-20 सालों में, मैं समझता हूं कि वास्तु के एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक शास्त्र के साथ जो घटनाएं इन तथाकथित इंजीनियरों के कारण हुई है, इन तथाकथित नए वैज्ञानिको के कारण हुई है, उतनी गलतियां और वो हरकते जिनके कारण आज वास्तु के विज्ञान के साथ ये मज़ाक हो रहा है शायद पहले कभी नहीं हुआ।
लोग समझते हैं , चाहे वो वास्तु शास्त्री हो, चाहे वो लोग हो जो इन वास्तु शास्त्रों के हिसाब से बहुत सारी बातें करते हैं। एक बात में साफ करना चाहूंगा की वास्तु के संबंध का दर्शन आज भी कमजोर है, जब मैं कहता हूं कि वास्तु अपने आप में एक प्रायोगिक विज्ञान है, मैं बिल्कुल बताना चाहूंगा कि मैं उस वास्तु की बात नहीं कर रहा हूं, जो आज इंजीनियरों और इन तथाकथित वास्तु शास्त्रियों के हाथ की कठपुतलिया बना हुआ है। जहां पर लोग समझते है कि रसोई का चेहरा बदल देने से, रसोई का कोण बदल देने से शायद घर की समस्याएं मिट जाएगी, शायद सोने का कमरा अगर बदल दिया जाए तो घर में कलह खत्म हो जाएगी, अगर फेंगसुई की दो मूर्तियां लगा दी जाए तो घर में धन बरसने लगेगा।
तो जब मैं वास्तु की बातें कर रहा हूं तो मैं वास्तु के उस विज्ञान की बात कर रहा हूँ , वास्तु के उन आधारों की बात कर रहा हूं, जिनकी चर्चा वेदों में, सुलभ शास्त्रों में है। और जो एक वैज्ञानिक अवधारणा है। मैं उस हिसाब से वास्तु की बात नहीं करना चाहता जिस हिसाब से आज ये तथाकथित वास्तु शास्त्रियों और इन तथाकथित इंजीनियरों के हाथ की कठपुतलिया बन चुका है। व्यापार जब धर्म और आध्यात्म या कहें व्यापार जब विज्ञान के साथ खिलवाड़ करना शुरु करता है तो जीवन के कुछ बहुत बड़े सत्य मनुष्य की भावी परिस्थितियों के लिए अपराध बन जाते है।
एटम की खोज, एटम की शक्ति की खोज, मैं समझता हूं कि मनुष्य की वव्यवहारिकता और मनुष्य के आत्मा के बल की एक बहुत बड़ी खोज थी, लेकिन व्यापारियों ने, इन तथाकथित व्यापारियों ने और राजनीतिज्ञों के हाथ में पड़ी और 6 और 9 अगस्त हिरोशिमा और नागशाकी पूरी दुनिया के लिए हिंसा उदाहरण बन गया।
जब भी व्यापार और राजनीति, धर्म और विज्ञान का उपयोग करती है तो मनुष्य की भावी परिस्थितियों पर अपराध का प्रश्नावाचक चिन्ह लग जाता है। वास्तु के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है कि वास्तु को उन लोगों ने हथिया लिया है जो पूर्णत: व्यापारिक है। ज्योतिष जैसे एक वैज्ञानिक शास्त्र के साथ अगर आज खिलवाड़ हो रहा है और लोग अंधविश्वास की तरह बातें कर रहे है, लोग कुछ भी कर रहे है और छोटे लोगों से लेकर बड़े लोगों तक सब कोई जिन्हें हम भारत का चरित्र मानते हैं। लोग समझते है कि पीपल के पेड़ में शनिवार को अगर पानी चढ़ा दिया जाए तो शनि ग्रह से मुक्ति हो जाती है। मेरे एक मित्र थे, कुछ दिन पहले मेरी उनसे बातचीत हो रही थी। उनके पुत्र को किसी ने कहा था कि काल सर्प योग है और बेहतर होगा अगर वो कही त्रयंबकेश्वर जाकर वहां पर तेल चढ़ाकर आ जायें तो उनके पुत्र को कालसर्प योग से मुक्ति मिल जाएगी। और मजे की बात है हम दोनों बात कर रहे थे और मैनें कहा कि अगर किसी को कालसर्प योग है और त्रयंबकेश्वर जाकर एक पीपे का तेल चढ़ाने से अगर कालसर्प योग से मुक्ति मिल जाए तो फिर इससे साधारण इससे सस्ता उपाय कही मिल ही नहीं सकता ।
तो कुछ ऐसी ही बातें, जैसी बातें ज्योतिष में हुई हैं, वैसे ही कुछ बातें वास्तु में आ रही है। लोग समझ रहे है रसोईयों के चेहरे बदल देने से घर का वातावरण बदल जाएगा। सोने के कमरे बदल देने से शायद कलह मिट जाएगी। मैं आज वास्तु के उस व्यवहारिक विज्ञान पर बात करना चाहता हूं, जिसके संबंध में लोगों का चिंतन कम ही पड़ता है।
आखिर क्या कहता है वास्तु? और क्या यह संभव है कि वास्तु जो कहता है उसके वैज्ञानिक आधार जुटा लिए जा सकते है या जुटाए गए है। आखिर क्या कहता है वास्तु? धर्म और आध्यात्म के जगत की दुनिया के जितने पंथ हैं जितने भी पंथ पैदा हुए हैं और जितने भी धार्मिक लोग इस दुनिया में हुए हैं जब सब ने इन जीवन के हमारे अस्तित्व के सच को जाना तो एक बात तो यह भी जानी कि जीवन नाम एक सामंजस्य का है, जीवन नाम एक जुड़ाव का है, हम सब आपस में जुड़े हुए है। वो चहचहाने वाला पक्षी, वो हिलने वाली पत्तियां, ये लकड़ी, ये माइक, दूर कही ट्रक चलाता हुआ ड्रायवर। मेरे से दूर बैठा हुआ भी एक इंसान और एक पत्थर सब आपस में जुड़े हुए है। चाहे एवरेस्ट की ऊंचाईयां हो और चाहे सागर के अंत के छोर में बैठी हुई मछलियां हो, चाहे कही कोई ग्रीन लैण्ड में बैठा हुआ इंसान हो और कही कोई न्यूजीलैण्ड में बैठी हुई बच्ची हो।
दुनिया में जो भी कुछ है दुनिया में जो भी कुछ अस्तित्वगत है, उन सारी बातों का आपस में जुड़ाव है, हम सब जुड़े हुए है। जुड़ाव कभी स्पष्ट होता है कभी बहुत अस्पष्ट, लेकिन हम सब जुड़े हुए है। हम सबका आपस में एक आंतरिक संबंध है। एक घटना मुझे याद आती है, बुद्ध से एक बार पूछा गया कि आप क्या समझते है की आपको जिस बुद्धत्व का, ये जीवन के अस्तित्व के सत्य का जो दर्शन और जो अनुभव हुआ है, आप उसे किसका, किसके प्रति आप हकदार बताना चाहेंगे, आप किसको जीवन के अनुभव का ये जो पूरा दर्शन है, आप किसको समर्पित करना चाहेंगे। बुद्ध ने कहा फूल से लेकर पत्तियों तक, पत्तियों से लेकर जानवरों तक, जानवरों से लेकर पत्थरों तक, पत्थरों से लेकर झील की नदियों तक, बहते हुए सागर के पानी तक, इस जीवन में जो भी कुछ है, चाहे वह सुबह होने वाला सूरज हो या रात में टिमटिमाने वाले तारे हो, चाहे वो बहती हुई हवाएं हो या शोर करते हुए पक्षी हो, चाहे वो लोग हो जिन्होंने मुझे भूखा रखा और चाहे वो लोग हो जिन्होंने मुझे सहारा और बल दिया। इस समाष्टि में जो भी जितनी भी बातें है जीवित या अजीवित अगर उनमें से एक भी यहां पर नहीं होती, अगर उनमें से एक की भी यहां पर कमी रह जाती तो शायद जीवन में अस्तित्व और सत्य के अनुभव से मैं अछूता रह जाता।
बुद्धा सीधे-सीधे मायनों में एक बात कहा रहे है कि समाष्टि के अंदर जो भी कुछ है, उन सबने मिलकर मुझे बुद्ध या बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए सहारा दिया था। बुद्ध सीधी-सीधी एक बात कहा रहे हैं कि जीवन में जो भी मौजूद है, चाहे वो जीवित हो, चाहे वो अजीवित हो। अगर उन सबके साथ हमारा एक आंतरिक संबंध न हो तो जो मैं आज हूँ वो नहीं हो सकता, और मैं आज जो भी हूँ उसका कारण सिर्फ मैं नहीं उसके कारण वो लोग भी है जिन्होंने कभी मुझे देखा नहीं, जिनकी कभी मेरे से बातचीत नहीं हुई, जिनके बारे में मेरा कोई अपना एक मानसिक संबंध भी नहीं, मनुष्य को छोड़े, वो पक्षी, वो जानवर, वो पेड़-पौधे, फूल, वो पत्तियां, वो कीड़े-मकोडे. जीवन में जितनी सारी बातें है इन सबके एक संयुक्त जोड़ का मैं परिणाम बना हूँ।
बुद्ध एक ऐसी बात कर रहे है जो बात अगर मनुष्य के समझ में आ जाए तो धर्म और अध्यात्म के जीवन में आज तक अहंकार के प्रति जो लड़ाई चली है शायद उसका निवारण कुछ मिनटों में हो जाए, क्योकि हम तो यह समझते है कि अगर हमने जीवन में कुछ उपलब्धियां पाई हैं तो वो हमारी वजह से। हम तो यह समझते है कि अगर हमने जीवन में सम्पदा और धन पाया है तो वो हमारी मेहनत की वजह से। हम तो यह भूल ही जाते है कि जो हमारी समृद्धि है, जो हमारी संपदा है, जो हमारी स्थितियां है उसके निर्णायक हम कुछ भी नहीं। हम तो केवल जो निर्णय इस समाष्टि के जितने विभिन्न रुप है उसके संयुक्त जोड़ से जो भी कुछ हुआ हम केवल उसके परिणाम के तौर पर अभिव्यक्ति बनकर निकले हैं। हमने केवल जीवन के अंदर जो अस्तित्वगत बातें हुई, उनके सामंजस्य की अभिव्यक्ति का केवल एक स्वरुप बने, इसके अलावा कुछ नहीं, ठीक यही बात वास्तु भी करता है।