
भारत ने एक ऐसी सभ्यता को जन्म दिया जिसने हर एक शब्द सोच समझकर रचे और उपयोग भी किया। शिक्षक और गुरु भी ऐसे ही शब्द हैं, एक शब्द दर्शाता है जहाँ अनुभव से रहित आदर्श को मन में स्थापित करने का प्रयत्न और दूसरा शब्द दर्शाता जहाँ अनुभव के आधार पर जीवन के व्यवहार को रचा गया या रचने की कोशिश रही।
भारत में शिक्षक और गुरु दो अलग अलग मार्ग रहे अलग अलग व्यवस्था। शिक्षक वो लोग रहे जिन्होंने नदी किनारे खड़े होकर बिना नदी में उतरे तैरने की सारी प्रक्रिया दे दी और गुरु वो लोग रहे जिन्होंने हाथ पकड़कर नदी में डाल दिया और तैरते तैरते तैराकी के प्रयत्न के साथ तैरने का अनुभव दे डाला।
पश्चिम ने शिक्षक दिए इतिहास को और पूर्व ने गुरु। अब बात दूसरी है जहाँ शिक्षक पूर्व पर हावी हो रहे हैं, गुरु लुप्त प्राय ही है।