
स्वामी विवेकानंद आपको मेरा प्रणाम
आज एक तरफ जहाँ दुनिया आतंकवाद और हिंसा के सिरहाने पर कराहती हुई खड़ी है, भारत हिंसा के ज़ख़्मों को आज भी झेल रहा है, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसे व्यक्ति का जन्म आज ही के दिन हुआ था जिसने विश्व बन्धुत्व और विश्व एकता के साथ साथ पंथीय एकता के लिए अपना जीवन तपा दिया। स्वामी विवेकानंद जीवन के शुरुआती दौर में संपूर्ण तौर पर नास्तिक होते हुए भी खोज की एक ऐसी यात्रा पर निकले जहाँ से न सिर्फ अस्तित्व के प्रति प्रेम की एक अनोखी कहानी ने जन्म लिया बल्कि मानव सेवा के अनुपम प्रयत्न भी।
अग्नि का उपयोग भोजन बनाने के लिए भी होता है और जलने, जलाने के लिए भी पर अगर भोजन पकाते पकाते अग्नि ने हमारे हाथों को जलाया है तब हमें अग्नि के उपयोग और साथ ही साथ सावधानियों का भी ध्यान रखना होगा पर अगर जलने मात्र से आप पूरी अग्नि ही की तिलांजलि दे देंगे तब उससे ज्यादा मूढ़ता और कुछ नहीं हो सकती। आज धर्मान्धता जहाँ भी है उसकी वजह वे लोग हैं जिन्होंने जीवन की खोज को आश्रमों के हवाले और व्यापारियों की गोद में छोड़ दिया है, पंथ और पंथीय शिक्षा समाज के लिए है, जीवन के लिए है, और इसकी जवाबदारी हम सब की है कि हम सब इस इसकी मौलिकता बचाये रखें, प्रयास करें कि जीवन को समझने के सारे द्वार उनसे मुक्त हों जो इसे गन्दा कर रहे हैं। पंथ, धर्म, दर्शन; जीवन को मजबूत और परिपक्व बनाने की नीतियां और रास्ते हैं, अगर इन रास्तों पर कांटे फेंक दिए गए हैं तो रास्तों को अपमानित न करें, बल्कि काँटों को रास्तों से हटाने में सहयोग।