
सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति । सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु ॥१॥
यह सूत्र भूमि सूत्र है, आज से हज़ारों साल पहले भारत के मनीषियों ने भूमि, धरा के प्रति अपने ज्ञान और प्रेम से रचा था। भारत के आदर्श में हमेशा प्रकृति के प्रति प्रेम और आदर रहा है। कई बार जब हम आज के भारत को देखते हैं तो प्रश्न वाजिब है कि हमारे इस आदर्श को हुआ क्या ?
मज़ेदार बात है कि वो लोग जो आज #earthday पर लोगों से प्रकृति के प्रति आदर माँगते हुए आधुनिकता का पाठ पढ़ाएँगे ये वही लोग हैं जो भारत की अनंत कल्पना में समाये इतिहास के गर्भ से निकले इन महान सूत्रों और ज्ञान के आधार को अपमानित करते हैं। अगर भारत की शिक्षा प्रणाली और हमारे जीवन जीने का तरीक़ा इस देश के ज्ञान से निकला होता तो आज हम सम्पूर्ण विश्व में दुनिया को सिखा रहे होते की इस धरा के संवर्धन के लिये हमें करना क्या चाहिये। दुःख है इस देश के हज़ारों लाखों लोग अपने ही ज्ञान से अनभिज्ञ हैं।