जो गद्दियों को ठुकराता चला गया
- Admin
- 16 मार्च 2021
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तिनकों को जोड़ के आशियाँ बनाता गया हौसला ही तो था जो दरख़्तों से रिश्ता निभाता चला गया
हर एक मोड़ में होती है ख्वाहिश लौट जाने की वो केवल एक ज़िद थी, बस रास्ता बनाता चला गया
ना कोई उम्मीद थी, ना कोई ख्वाहिश, बस उड़ान थी परिंदा बस यूँ ही, आसमान में चेहरा बनाता गया
बनते और बिगड़ते, तख़्त, ताज और शहज़ादे हैं वो तो फ़क़ीर होता है, जो गद्दियों को ठुकराता चला गया


