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जैसा मैंने जाना - श्री रामनाथ कोविंद

  • Writer: Admin
    Admin
  • Jun 21, 2017
  • 5 min read


जून २०१५ का वह समय गर्मी और उमस से भरा हुआ था, उस भीषण गर्मी, एक दोपहर आनंद ही आनंद के अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के अध्यक्ष श्री अजय सिंह जी ने मुझे अपना फोन देते हुआ कहा "मेरे परम मित्र या बड़े भाई आपसे बात करना चाहते हैं" मैंने उनका फ़ोन हाथ में लिया और दूसरे तरफ से एक शांत और मधुर आवाज़ ने कहा प्रणाम विवेक जी ! यह कोई और नहीं बल्कि श्री रामनाथ कोविंद जी थे।

इस पहली चर्चा के बाद अजय सिंह जी के साथ कई बार मेरी श्री रामनाथ कोविंद जी के साथ फ़ोन पर चर्चा होती रही। यह अगस्त का महीना था जब फिर अजय जी का फ़ोन बीच दोपहर मेरे पास आया, अजय जी ने कहा विवेक जी " रामनाथ जी बिहार के राज्यपाल होंगे, मैं अभी अभी दिल्ली के लिए निकल रहा हूँ।" बस कुछ ही घंटो के बाद अजय जी का फ़ोन मेरे पास वापस आया, और फिर से एक मधुर और विनम्र आवाज़ ने कहा प्रणाम विवेक जी ! मैंने श्री रामनाथ जी को राज्यपाल बनने पर अपनी शुभकामनायें दीं।


मुझे बिहार में राज्यपाल जी के शपथ समारोह में आने का निमंत्रण दिया गया, चूँकि मैं ऐसे कार्यक्रमों से दूरी बनाये रखता हूँ, पर अजय सिंह जी और श्री रामनाथ कोविंद जी के लगातार कहने पर मैं बिहार जाने के लिए निकल पड़ा। शपथ के ठीक एक दिन पहले मैं बिहार राजभवन पहुंचा, वहां मेरी मुलाकात श्री कोविंद जी के साथ हुईं, हमने साथ बैठकर ना जाने जीवन के कितने आयामों पर चर्चा की, श्री रामनाथ कोविंद जी के अंतर्मन में एक ऐसे व्यक्ति को मैंने देखा जिसका सम्बन्ध जीवन के अनंत आयामों के साथ था। शपथ के एक दिन पहले होने वाले ना जाने कितने व्यस्त समय में भी कोविंद जी दर्शन और जीवन की बात करते थे, भारत के युवा और इस राष्ट्र के चरित्र पर मेरे चिंतन को सुनते रहे। मैंने अपने जीवन में कई राजनीतिज्ञों को व्यक्तिगत रूप से जाना है पर श्री रामनाथ कोविंद जी से मिलना अंतर्मन से सुखद था, हम दोनों अकेले घंटो बैठकर जीवन किए अनंत आयमों, ध्यान, दर्शन पर चिंतन कर सकते थे।


शपथ ग्रहण समारोह में मुझे जिस व्यक्ति के साथ मुलाकात हुई मुझे उनमें जीवन के बहुआयामी व्यक्तित्व दिखाई दिया, एक ऐसा आयाम जिसे आवश्यकता भारत के सम्पूर्ण क्षेत्रों में है। पटना से जाने के पश्चात मुझे अक्सर राजभवन पटना से फ़ोन आते थे, और जब भी फ़ोन आये तो फ़ोन ऑपरेटर मुझसे सबसे पहले कहा करते थे, "सर हम राजभवन पटना से बोल रहे हैं, महामहिम जी आपसे बात करना चाहते हैं, पर आप विवेक जी ही हैं ना? और जैसे ही मैं सहमति दूँ, दूसरी तरफ से एक मधुर मीठी आवाज़ पुनः कहती थी प्रणाम विवेक जी !

"महामहिम आपसे मिलना चाहते हैं"बस थोड़ा सा वक्त दें और फिर मुझे उनके पास ले चलें""नहीं, आप यहीं रुकें, महामहिम स्वयं यहीं आ रहे हैं।"


मैं हतप्रभ था क्योंकि राज्यपाल जी के कई तरीके की प्रोटोकॉल होतीं हैं, मैंने राजभवन के कर्मचारी से कहा नहीं आप मुझे ही ले चलो जिसे अनसुना कर दिया। बस थोड़ी ही देर में श्री कोविंद जी कमरे में थे, वही मधुरता, अपनेपन और सहजता से कहा विवेक जी प्रणाम ! बैठने के साथ सामान्य चर्चा के उपरान्त राजभवन के कर्मचारियों को कहा कि विवेक जी से भोजन के सम्बन्ध में आप ही पूछ लेना, इनको वही देना जो ये भोजन में लेते हों, और हँसते हुए कर्मचारियों को विदा किया। मैं कोविंद जी की मधुरता, सहजता, प्रेम से प्रभावित था, जीवन के समस्त लक्ष्यों में उन्होंने जीवन को बड़ा पवित्र रखा था। राजभवन कर्मचारियों का दल जब भी मेरे साथ होता केवल कहता " ऐसे महामहिम हमने पहली बार देखें हैं जो राजभवन के कर्मचारियों को परिवार की तरह मानते हैं" यह है कोविंद जी का परिचय। मैं जितने भी दिन राजभवन में था बस यही सिलसिला रोज सुबह और शाम में चलता रहा, श्री रामनाथ कोविंद जी के साथ घंटो तक जीवन के आयामों पर चर्चा, भारत के इतिहास, इसकी पौराणिक गाथाएं, इस राष्ट्र का चिंतन, दर्शन, भविष्य और ना जाने क्या क्या। एक दिन किताबों की चर्चा करते हुए श्री रामनाथ जी मुझे अपनी लाइब्रेरी तक ले गए, अनेकानेक किताबें थीं, चूँकि मैं बिहार के कुछ प्राचीन स्थलों की यात्रा में जाने वाला था उन्होंने पहले से बहुत सारी किताबें पहले से छांट कर मेरे लिए अलग रख लीं थीं। मैं जितने भी दिन राजभवन में था, मैं हतप्रभ था कि वो घंटो तक नियमित अपने कार्यालय जाकर कितने विषयों की फाइलों का मुआयना करते थे, ना जाने कितने आंगुतकों से मुलाकात करते थे, और बिलकुल एक साधक की तरह अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते थे, पर साथ ही साथ जीवन की समस्त स्तम्भों का स्वागत भी। माननीय रामनाथ कोविंद जी के बारे में मेरा यह पहला सार्वजनिक लेख है और इसका कारण सिर्फ इतना है कि जबसे इनका नामांकन भारत के राष्ट्रपति के लिए हुआ है, अंग्रेजी और हिंदी के अख़बारों, ने कोविंद जी की शक्शियत के साथ दुर्व्यवहार किया है। मैं समझता हूँ कि भारत का राष्ट्रपति मात्र संविधान की रक्षा नहीं करता है, बल्कि इस सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए एक उदाहरण होता है, जीवन का। जीवन का स्वप्न आरम्भ और दर्शन क्या हो ? जीवन के क्या आयाम हों ? जीवन को कैसे हम एक नए राह की तरफ ले कर चलें, इस राष्ट्र की दशा में हमारा सकारात्मक सहयोग क्या हो, यह भारत के राष्ट्रपति का कर्त्तव्य होता है। १२५ करोड़ लोगों में जीवन में सकारत्मक भाव की स्थापना भी भारत के राष्ट्रपति का कर्त्तव्य होता है, मैं समझता हूँ यह कोविंद जी सबसे बड़ी योग्यता है। संविधान और कानून के बारे में उनकी जो समझ है उतनी ही समझ इस राष्ट्र की आत्मा की भी है। मुझे लगता है यह विरला समय है जब केवल एक कानूनों, संविधान, राजनीति का जानकार नहीं अपितु भारत की आत्मा की समझने वाला व्यक्ति इस राष्ट्र का प्रथम नागरिक होगा।


श्री रामनाथ कोविंद जी का नामांकन एक सन्देश है और वो सन्देश है कि हाँ भारत के राष्ट्रपति के तौर पर एक ऐसा व्यक्ति होगा जो भारत के लाखों लोगों को उनके जीवन में एक प्रेरणा का स्रोत होगा, जहाँ जीवन के मध्य दर्शन और दुनिया का समयोग होगा। यह एक संदेश है कि सम्पूर्ण भारत की जनता को कि भारत का प्रथम नागरिक केवल संविधान का संरक्षक नहीं बल्कि साथ ही साथ जीवन के नैतिक मूल्यों का साधक भी होगा। यह एक सन्देश समूर्ण विश्व के लिए भी है हाँ भारत का राष्ट्रपति एक ऐसा व्यक्ति होगा जो शांति, जीवन के निर्णायक मूल्यों, जीवन के दर्शन और भारत की आत्मा से परिचय लेकर विश्व के पटल पर एक नए दूत की भूमिका अदा करेगा। मेरी शुभकामनायें भारत के उस लाल को, जो सभ्य, निर्मल, दार्शनिक, सौम्य, कानून का जानकार, मिलनसार, सम्यता का दर्शक, भारत के आत्मा का उद्घोषक है और भारत के असंख्य लोगों को एक नया आरम्भ देने का प्रयास करने वाला है। श्री रामनाथ कोविंद जी आपको मेरा नमस्कार। आयें नए भारत की घोषणा का उद्घोष करें।


विवेक जी

नागपुर

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